सत्य की महिमा

सत्य धर्म के मार्ग पर चलने वाले के लिए कितना महत्त्वपूर्ण है, इसका अनुमान हम सभी को है । एक वेद-मन्त्र इसको बहुत ही दृढ़ता से कहता है, और सत्य में निहित बल का वर्णन करता है । उसी का विस्तृत वर्णन मैंने इस लेख में दिया है ।

ऋतस्य हि शुरुधः सन्ति पूर्वीर्-

                  ऋतस्य धीतिर्वृजनानि हन्ति ।

ऋतस्य श्लोको बधिरा ततर्द

                  कर्णा बुधानः शुचमान आयोः ॥ ऋक्० ४।२३।८॥

देवता – इन्द्र ऋतदेवाः

शब्द-व्याख्या

यह मन्त्र निरु० १०।२६ में व्याख्यात है । वहां इसका वर्षा के विषय में आधिदैविक अर्थ किया गया है । इसलिए उसके पते मैंने नीचे नहीं दिए हैं ।

शब्द (विभक्ति/पुरुष । वचन)धातु + मुख्य उपसर्ग / प्रत्ययअर्थ
ऋतस्य (६।१)ऋ गतिप्रापणयोः (भ्वादिः) + क्त (उणादिः ३।८९ – ऋच्छत्यात्मानं प्राप्नोतीति ऋतं यथार्थम् वा)सत्य की
हिअव्ययनिश्चय से
शुरुधः (१।३)याः शु=सद्यो रुन्धन्ति ताः स्वसेनाः (महर्षि-दयानन्द-व्याख्या)सेनाएं
सन्ति (१।३)अस भुविहोती हैं
पूर्वीः (१।३)अनादिकालीन
ऋतस्य (६।१)पूर्ववत्सत्य का
धीतिः (१।१)डुधाञ् धारणपोषणयोः + क्तिन्,धीः कर्मनाम (निघ० २।५)धीराः प्रज्ञानवन्तो ध्यानवन्तः (निरु० ४।९)अतः धारणावती प्रज्ञाज्ञान अथवा आचरण
वृजनानि (२।३)वृजी वर्जने (अदादिः+चुरादिः)वर्जनीय/त्याजनीय दोषों को
हन्ति (१।१)हन हिंसागत्योः (अदादिः)नष्ट करता है
ऋतस्य (६।१)पूर्ववत्सत्य का
श्लोकः (१।१)श्लोकृ सङ्घाते (भ्वादिः)यत्र अक्षराणां सङ्घातो भवतिवाणी
बधिरा (= बधिराणि २।३, व्यत्ययेन)बध बन्धने (भ्वादिः), बन्ध बन्धने (क्र्यादिः) वा,बद्धश्रोत्रः (निरु० १०।२६)बहरे
ततर्द (१।१)उतृदिर् हिंसानादरयोः (रुधादिः)फाड़ देती है
कर्णा (= कर्णानि २।३, व्यत्ययेन)कॄ विक्षेपे (तुदादिः)कीर्यते विस्तीर्यते शब्दोऽत्रकानों को
बुधानः (१।१)बुधिर् बोधने (भ्वादिः) + शानच् णिजर्थेजनाता हुआ
शुचमानः (१।१)ईशुचिर् पूतीभावे (दिवादिः)पवित्र करता हुआ
आयोः (६।१)आङ् + यु मिश्रणेऽमिश्रणे च (अदादिः)आयु का

अन्वयः – ऋतस्य हि शुरुधः पूर्वीः सन्ति । ऋतस्य धीतिर्वृजनानि हन्ति । ऋतस्य श्लोको बुधान आयोः शुचमानो बधिराणि कर्णानि ततर्द । 

भाषार्थः – सत्य की सेनाएं बहुत पुरानी हैं । सत्य की प्रज्ञा और आचरण दोषों को नष्ट करता है । सत्य वचन सत्य जनाते हुए और आयु को पवित्र करते हुए, बहरे कानों को जैसे फाड़ देते हैं – जो उनको नहीं सुनना चाहता, उसको भी सुनने पड़ते हैं ।

भावार्थः – वैदिक मन्त्रों की परम्परा में, इस अकेले मन्त्र के भी अनेकों उपदेश हैं –

  • सत्य आजकल में उत्पन्न नहीं हुआ है । वह तो अनादि काल से चला आ रहा है और अनन्त काल तक चलता रहेगा, क्योंकि जो है, वही सत्य है और परमात्मा स्वयं सत्य-स्वरूप हैं ।
  • सत्य की उपमा सेनाओं से दी गई है, क्योंकि सत्य बहुत बलशाली होता है, झूठ और अन्य दुष्प्रवृत्तियों और दुर्जनों पर आक्रमण करके उनको हराता है । आरम्भ में हो सकता है कि सत्य हारता हुआ दिखाई पड़े, और झूठ जीतता हुआ, परन्तु अन्त में, परमात्मा के आदेश से, ब्रह्माण्ड की प्रत्येक शक्ति सत्य के साथ खड़ी हो जाती है । यही महाभारत में चरित्रार्थ हुआ ।
  • सत्य ज्ञान और आचरण से मनुष्य के स्वदोष निवृत्त होते हैं । महर्षि ने सत्य की परिभाषा दी है – जो जैसा है, उसे वैसा ही जानना, मानना व बोलना सत्य है । इसके विपरीत जो जैसा नहीं है, उसे मानने या बोलने से, हममें दोष उत्पन्न होते हैं, जो हमारे पतन का कारण बनते हैं । असत्य से जनित अविद्या से हम इस शरीर में बन्धे रहते हैं ।
  • सत्य से वस्तु-स्थिति का बोध होता है – सच्चा ज्ञान होता है । झूठे ज्ञान तो अनेक होते हैं, परन्तु सत्य सर्वदा एक होता है । मूर्ति-पूजा से यह सम्यक् उदाह्रित होता है – परमात्मा की झूठी मूर्तियां या आकार तो अनेक हैं, परन्तु निराकार सत्य परमात्मा तो एक ही है !
  • सत्य से जीवन शुद्ध होता है । मैंने असत्य को सही मानने वालों के अनेकों तर्क सुने हैं – दूसरे का हृदय न तोड़ना, दूसरे की रक्षा करना, आदि, आदि – परन्तु सत्य के गुणों को वे नहीं समझ रहें हैं । सत्य ऐसा धर्म है जिससे मनुष्य अन्दर तक पवित्र हो जाता है । इसीलिए इसको देवयान, या मोक्ष के लिए अनिवार्य माना है – “सत्येन पन्था विततो देवयानः (मुण्डक० ३।१।६)” ।
  • सत्य इतना बलशाली है कि उसको न चाहने वाले को भी उसके सामने नतमस्तक होना पड़ता है –  “सत्यमेव जयति नानृतम् (मुण्डक० ३।१।६)” । जैसे, महर्षि दयानन्द के सामने ईसाइयों और मुसलमानों ने भी शीश नवाया । 

इस प्रकार, मन्त्र से हमें शिक्षा मिलती है कि, मनुष्यों के लिए, सत्य एक ऐसा अनिवार्य धर्म है, जो व्यवहार में लाने में सबसे कठिन होता है, परन्तु जिसमें दूसरी ओर, ब्रह्माण्ड की दिव्य सेनाएं हमारी ओर से लड़ती हैं । सत्य से हमें आत्मिक बल मिलता है और हमारे स्वास्थ्य में भी वृद्धि होती है । क्या यह भी एक कारण है कि आधुनिक युग में लोगों को इतनी भयंकर बिमारियों ने घेर रखा है ?!